Valentine’s Day 2024: प्यार, इश्क, मोहब्बत, प्रेम, लगाव, समर्पण या त्याग आप चाहे किसी भी भाषा में इसे परिभाषित कर सकते हैं. प्रेम के इसी भाव को मनाने के लिए 14 फरवरी के दिन को वैलेंटाइन डे के रूप में मनाया जाता है. लेकिन भारतीय संस्कृति और सूफियाना प्रेम का सही अर्थ अमीर खुसरो से जानिए. हजरत निजामुद्दीन के प्रति खुसरो का अद्भुत प्रेम देख उनके मुख से निकला था कि, इसकी कब्र मेरी कब्र के पास ही बनाना. दिल्ली में हजरत निजामुद्दीन औलिया का पवित्र सूफी मकबरा (दरगाह) और इसी के सामने लाल पत्थर से अमीर खुसरो का मकबरा भी बनाया गया है.
अमीर खुसरो का अपने गुरु हजरत निजामुद्दीन के प्रति ऐसा प्रेम और समर्पण भाव था, जिसका उदाहरण आज भी दिया जाता है. उन्होंने प्रेम की उच्च पराकाष्ठा को परिभाषित किया और प्रेम के सही अर्थ को समझाया. आमतौर पर प्रेम शब्द सुनते ही हम प्रेमी जोड़े या पति-पत्नी के बीच के प्रेम को समझते हैं. लेकिन खुसरो ने यह बताया कि प्रेम किसी से भी किया जा सकता है. बस शर्त यह है कि प्रेम आत्मीय और सम्मानीय होना चाहिए और उन्होंने अपने गुरु हजरत निजामुद्दीन से ऐसा ही प्रेम किया.
खुसरो से सीखें दिल जीतने की कला
खुसरो ने अपने गुरु का दिल जीतने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी. हजरत निजामुद्दीन के कई शिष्य थे. एक बार उन्होंने सोचा कि शिष्यों की परीक्षा लेकर यह जाना जाए कि इतने शिष्यों में सच्चा शिष्य आखिर कौन है. इसके बाद हजरत अपने 22 शिष्यों को लेकर दिल्ली घूमने निकल पड़े. घूमते-घूमते रात हो गई और वे शिष्यों के साथ एक वैश्या के कोठे पर पहुंचे. उन्होंने सभी शिष्यों को नीचे खड़े रहने को कहा और खुद कोठे के ऊपर चले गए. इसके बाद हजरत ने वैश्या से कहा कि मेरे लिए नीचे से भोजन और एक शराब की बोतल का प्रबंध करो, जिसमें पानी भरा हो और बोतल को देख मेरे शिष्य इसे शराब की बोतल समझे.
जब भोजन और शराब की बोतल हजरत के लिए ऊपर कोठे में जाने लगी तो सभी शिष्य हैरान रह गए. शिष्यों ने सोचा कि ये तो हमें सद्मार्ग पर चलने की शिक्षा देते हैं खुद ऐसे काम करते हैं. गुरु ऐसा नहीं होता है और ये सोचकर एक-एक कर सारे शिष्य घर लौटने लगे. लेकिन खुसरो पूरी रात वहीं खड़े रहे.
जब सुबह हुई तो हजरत नीचे उतरे और खुसरो को अकेला खड़ा दे पूछा कि, जब सभी चले गए तो तू यहां क्यों रुका तू क्यों नहीं भागा? क्या तूने नहीं देखा कि मैंने सारी रात वैश्या के साथ बिताई और शराब भी मंगवा कर पी? खुसरो ने कहा- सब तो अपने-अपने घर लौट गए. लेकिन मैं भाग भी जाता तो कहां जाता. आपके कदमों के सिवा मुझे चैन कहां. मेरी तो सारी जिंदगी आपके चरणों में अर्पण है. खुसरो का ऐसा प्रेम भाव देख हजरत ने उसे खुशी से लगे लगा लिया और इस तरह से अमीर खुसरो से रूप में हजरत को अपना सच्चा शिष्य भी मिल गया.
प्रेम की परिभाषा खुसरो के दोहे से….
प्रेम का इजहार करने के लिए आज भी लोग शेरो-शायरी और कविताएं का सहारा लेते हैं. सालों पहले खुसरो ने भी प्रेम की परिभाषा अपने दोहे के माध्यम से समझाई थी. अमीर खुसरो सूफी कवि थे और ख्वाजा निजामुद्दीन उनकी कविताओं के मुरीद थे.
अपनी छवि बनाइ के जो मैं पी के पास गई,
जब छवि देखी पीहू की तो अपनी भूल गई.
छाप तिलक सब छीनी रे मोसे नैना मिलाइ के
बात अघम कह दीन्हीं रे मोसे नैना मिलाइ के….
खुसरो पाती प्रेम की बिरला बांचे कोय
वेद, कुरान, पोथी पढ़े, प्रेम बिना का होय.
प्रीत करे सो ऐसी करे जा के मन पतियाए,
जने-जने की पीत से, जो जनम अकारत जाए.
खुसरो दरिया प्रेम का, वाकी उल्टी धार,
जो उबरा सो डूब गया जो डूबा सो पार..
खुसरो बाजी प्रेम की मैं खेलूं पी के संग
जीत गयी तो पिया मोरे हारी पी के संग.
साजन ये मत जानियो तोहे बिछड़त मोहे को चैन
दिया जलत है रात में और जिया जलत बिन रैन.
गुरु-शिष्य प्रेम
भारतीय संस्कृति में गुरु-शिष्य प्रेम का उदाहरण केवल अमीर खुसरो और हजरत निजामुद्दीन ही नहीं बल्कि भारतीय साहित्य गुरु-शिष्य की कथाओं से भरा है. कबीर और रामानंद, एकलव्य और द्रोणाचार्य, विवेकानंद और रामकृष्ण परमहंस जैसे गुरु-शिष्य प्रेम के कई उदाहरण हैं. इन्होंने गुरु-शिष्य के प्रेम को समर्पण, त्याग और पवित्रता के साथ दर्शाया और गुरु को ही अपना ईश्वर मान लिया. इन्होंने गुरु प्रेम की भक्ति में संपूर्ण जीवन व्यतीत किया.
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