अम्मू स्वामीनाथन
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गणतंत्र दिवस 2025: अंग्रेजी हुकूमत की गुलामी से आजाद हुए के बाद भारत के पास सबसे बड़ी चुनौती खुद को एक लोकतांत्रिक राष्ट्र बनाना था। ऐसा देश जो किसी विदेशी क्वीन, राजा-महाराजा और नवाबों द्वारा नहीं, बल्कि जनता द्वारा चुने प्रतिनिधियों के जरिए नीतिगत तरीके से कार्य करे। जहां कार्यपालिका, न्यायपालिका और व्यवस्थापिका निष्पक्ष रूप से कार्य करें। इसके लिए भारत का संविधान 26 जनवरी 1950 में लागू किया गया।
भारतीय संविधान के निर्माण में बाबा साहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर प्रमुख भूमिका में रहे। उन्हें संविधान निर्माता के रूप में जाना जाता है। लेकिन संविधान का मसौदा तैयार करने के पीछे कई लोगों का योगदान है। संविधान निर्माण के लिए संविधान सभा का गठन किया गया, जिसमें कुल 379 सदस्य थे। इन गिने चुने लोगों में पुरुषों के साथ ही महिलाओं की भी हिस्सेदारी थी। संविधान सभा में 15 महिलाएं शामिल थीं, जिसमें से एक अम्मू स्वामीनाथन हैं। आइए जानते हैं कि अम्मू स्वामीनाथन कौन थीं और उन्हें संविधान सभा का सदस्य क्यों बनाया गया।
अम्मू स्वामीनाथन का जीवन परिचय
अम्मू स्वामीनाथन का जन्म केरल के पालघाट जिले के अनाकारा में सन् 1894 में हुआ था। 13 भाई बहनों में अम्मू सबसे छोटी थीं, इसलिए बचपन से ही उन्हें काफी लाड-प्यार मिला। हालांकि बचपन में ही अम्मू के पिता पंडित गोविंदा मेनन का निधन हो गया और मां ने ही उन्हें व उनके भाई बहनों को बड़ा किया। उस जमाने में केवल लड़कों को ही घर से दूर पढ़ने के लिए भेजा जाता था, इसलिए अम्मू स्कूल नहीं जा पाईं। लेकिन घर पर ही मलयालम में थोड़ी बहुत शिक्षा ग्रहण की।
अम्मू स्वामीनाथन का पारिवारिक जीवन
कहते हैं कि स्वामीनाथन नाम के एक बालक की मदद अम्मू के पिता ने बचपन में की, और उन्हें पढ़ने का मौका मिल सका। बाद में स्वामीनाथन ने छात्रवृत्तियों के सहारे उच्च शिक्षा हासिल की और मद्रास में वकालत शुरू की। जब स्वामीनाथन वापस अनाकारा गांव आए तो उन्हें अम्मू के पिता के निधन की सूचना मिली। स्वामीनाथन ने अम्मू की मां के सामने उनकी बेटी से शादी का प्रस्ताव रखा। उनकी सभी बहनों की शादी हो चुकी थी और अम्मू महज 13 वर्ष की थीं। स्वामीनाथन लगभग उनसे उम्र में 20 साल बड़े थे। अम्मू की मां ने शादी से मना कर दिया तो स्वामीनाथन से सीधे अम्मू से बात की। अम्मू ने स्वामीनाथन के समक्ष कुछ शर्तें रखीं, जैसे वह शहर में रहेंगी और उन से आने-जाने को लेकर कभी कोई सवाल नहीं पूछा जाएगा, क्योंकि उनके घर में भाइयों से भी कोई सवाल नहीं करता था। स्वामीनाथन ने उनकी सारी शर्तों को मानते हुए अम्मू से शादी कर ली।
अम्मू स्वामीनाथन आजादी आंदोलन से कैसे जुड़ीं
हालांकि शादी के बाद जातिगत भेदभाव के कारण उन्हें काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा। 1908 में शादी के बाद दोनों ने विलायत जाकर कोर्ट मैरिज की। स्वामीनाथन ने अम्मू का बहुत साथ दिया। घर पर उनके लिए ट्यूटर लगाया, ताकि वह पढ़ सकें और अंग्रेजी बोलना सीखें। उनकी प्रेरणा से अम्मू आगे चलकर आजादी आंदोलन में सक्रिय हुईं और 1934 में तमिलनाडु कांग्रेस का प्रमुख चेहरा बनीं।
संविधान निर्माण में अम्मू स्वामीनाथन की भूमिका
1947 में अम्मू मद्रास निर्वाचन क्षेत्र से संविधान सभा का हिस्सा बनीं। 24 नवंबर 1949 को संविधान के मसौदे को पारित करने के लिए अपने भाषण में अम्मू ने कहा, ‘बाहर के लोग कह रहे हैं कि भारत ने अपनी महिलाओं को बराबर अधिकार नहीं दिए हैं। अब हम कह सकते हैं कि जब भारतीय लोग स्वयं अपने संविधान को तैयार करते हैं तो उन्होंने देश के हर दूसरे नागरिक के बराबर महिलाओं को अधिकार दिए हैं।’