दुर्गा भाभी कौन थीं?
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बच्चा-बच्चा इस बात को जानता है कि भारत को ये आजादी किसी तोहफे में नहीं मिली। बल्कि, इसके लिए हमारे कई वीर सपूतों ने अपने प्राणों की कुर्बानी दी। भगत सिंह, चंद्र शेखर आजाद, सुखदेव, राजगुरु जैसे नाजाने कितने नाम इस सूची में शामिल हैं, लेकिन इसका मतलब ये बिल्कुल भी नहीं है कि महिलाएं इसमें पीछे थी।
दरअसल, अंग्रेजों के छक्के छुड़ाने में महिला स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का भी विशेष महत्व रहा है और इसका गवाह इतिहास है। इसी में एक महिला थीं दुर्गावती, जिन्हें लोग दुर्गा भाभी के नाम से भी जानते हैं। अंग्रेज भी इनके नाम से खौफ खाते थे। तो चलिए जानते हैं इस बारे में…
जानें दुर्गावती के बारे में
दुर्गावती को लोग दुर्गा भाभी के नाम से जानते हैं। उनका जन्म उत्तर प्रदेश के शहजादपुर गांव में 7 अक्तूबर 1907 को हुआ था। 11 साल में उनका विवाह भगवती चरण वोहरा से हो गया था। वोहरा हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन के सदस्य थे।
एसोसिएशन के सभी सदस्य दुर्गावती को भाभी कहकर संबोधित करते थे, जिसके बाद वे इस नाम से प्रसिद्ध हो गईं। दुर्गावती ने आजादी की लड़ाई लड़ने में अपना अहम योगदान निभाया और अंग्रेज भी उनसे खौफ खाते थे।
ये बात नहीं जानते होंगे आप
ये बात बेहद ही कम लोग जानते हैं कि जिस पिस्तौल से चंद्र शेखर आजाद ने खुद को गोली मारी थी। उसी पिस्तौल से दुर्गावती ने बलिदान दिया था। दूसरी तरफ दुर्गा भाभी को भारत की आयरन लेडी भी कहा जाता है।
16 नवंबर 1926 को लाहौर में करतार सिंह सराभी की शहादत की 11वीं वर्षगाठ के मौके पर दुर्गा भाभी चर्चा में आई थीं। फिर वे संग्राम सेनानियों की प्रमुख सहयोगी भी बनी। जब लाला लातपत राय की मौत हुई, तो उसके बाद भगत सिंह ने सॉन्डर्स की हत्या की योजना बनाई थी।
तब उस वक्त दुर्गा भाभी ने ही भगत सिंह और उनके बाकी साथियों को टीका लगाकर रवाना किया था। इस हत्या होने के बाद अंग्रेज उनके पीछे पड़ गए थे और फिर दुर्गा भाभी ने उन्हें बचाने के लिए भगत सिंह के साथ भेष बदलकर शहर छोड़ दिया था। वहीं, दुर्गावती ने बम बनाना भी सीखा था।