Thursday, November 28, 2024

Swastik Auspicious Symbol Of Hindu Dharma Can Hitler Used Swastik Know…

स्वस्तिक का संस्कृत में दूसरा अर्थ शुभ माना गाया है. इससे ये तो स्पष्ट हो जाता है कि स्वस्तिक शुभ कामों के लिए बनाया जाता है. नया घर, नई गाड़ी, फैक्ट्री की नई मशीन लेते समय, और विवाह के कार्ड में स्वस्तिक का चिन्ह आपको अवश्य मिलेगा. हाल ही में हमारे रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह आधुनिक लड़ाकू विमान लेते समय उसपर स्वस्तिक चिह्न बनाया था जिसपर बहुत बवाल भी किया था विरोधी पार्टी ने.

स्वस्तिक चिन्ह का इतिहास

हम बचपन से यह देखते चले आए हैं कि प्रत्येक हिन्दू त्योहार और मांगलिक प्रसंगों पर स्वस्तिक का चिह्न अवश्य बनता ही हैं. अधिकतर लोग यह चिह्न बनाते समय केवल यह विचार नहीं करते कि इसे क्यों बनाया जा रहा है. वे केवल परम्परा का निर्वाह करते हैं. आज हम आपको इससे जुड़े कुछ तथ्य बताते हैं. ये चिह्न अति प्राचीन हैं. सिंधु घाटी सभ्यता में भी यह चिह्न पाया गया है. यूरोप एशिया में भी यह चिह्न अपनी उपस्थिति दर्शाता है. बौद्ध और जैन धर्म के अनुयायी भी इस चिह्न का उपयोग मांगलिक प्रसंगों पर  किया गया है. सनातन धर्म के दो मुखी चिह्न हैं, पहला ‘ॐ’ और फिर दूसरा ‘स्वस्तिक’.

चलिए अब स्वस्तिक पर शास्त्रीय पक्ष पर चर्चा करते हैं, स्वस्तिक कई पुराणों और अनेक प्राचीन ग्रंथो में वर्णित हैं.

  • विश्व की सबसे पुरानी धार्मिक ग्रंथ ऋग्वेद 1.89.6 में ‘स्वस्ती‘ शब्द आया है जिसका सयानाचार्य ने उसका अर्थ कल्याण (स्वस्तीत्स्यविनाशनाम [ निरु. 3. 21])। “स्वस्ति अविनाशं” “दधातु विदधातु करोतु।”) करने वाला कहा है.
  • मत्स्य पुराण 267.17 (स्वस्तिकं पद्मकं शङ्घुमुत्पलं कमलं तथा) अनुसार, स्वस्तिक चिन्ह भगवान के अभिषेक के समय बनाना चाहिए.
  • मत्स्य पुराण 267.42 (पद्मस्वस्तिकशङ्खर्वा भूषितां कुन्तलालकैः।) अनुसार, माता लक्ष्मी के प्रतिमा–प्राणप्रतिष्ठा के समय, माता लक्ष्मी को स्वस्तिक आदि से विभूषित करना चाहिए.
  • मत्स्य पुराण 243.20 (स्वस्तिकं वर्धमानं च नन्द्यावतें सकोस्तुभम्‌॥) अनुसार स्वस्तिक, वर्धमान, आदि शुभ शकुन माने गए हैं.
  • अग्नि पुराण 320.29 अनुसार अनेक रंगो से युक्त स्वस्तिक सम्पूर्ण कामनाओं को देनेवाला है.
  • नारद पूरण पूर्वार्ध अध्याय 13.132 (शिलाचूर्णेन यो मर्त्यो देवागारं तु लेपयेत्। स्वस्तिकादीनि वा कुर्यात्तस्य पुण्यमनन्तकम्।) अनुसार, जो देवमंदिर में स्वस्तिक आदि के चिह्न बनाता है, उसको अनन्त पुण्य प्राप्त होता है.
  • स्कंद पुराण पुरुषोत्तम क्षेत्र महात्म्य अध्याय 25 अनुसार स्वस्तिक शादी के मंडपों में बनाया जाना चाहिए.

स्वस्तिक चिन्ह कैसा होता है: ‘स्वस्तिक‘ में एक-दूसरे को काटती हुई दो सीधी रेखाएं होती हैं. जो आगे चलकर मुड़ जाती है. इसके बाद भी ये रेखाएं अपने सिरों पर थोड़ी और आगे की तरफ मुड़ी होती हैं.

स्वस्तिक की चार दिशा किसका प्रतिनिधित्व करती हैं और क्या दर्शाती हैं?

  • गुरु स्वामी अंजनी नंदन दास के अनुसार, स्वस्तिक एक तरह से देखा जाए तो सनातन धर्म का प्रतीक है ॐ के बाद और सनातन धर्म के चार स्तंभ (धर्म, अर्थ, काम, और मोक्ष), चार युग (सत युग, त्रेता युग, द्वापर युग, और कल युग), चार वेद (ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, और अथर्ववेद) और चार वर्ण (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र) स्वस्तिक को दर्शाते हैं एवं प्रतिनिधित्व करते हैं. 
  • प्राचीन काल से ही हमारी संस्कृति में स्वस्तिक को शुभ का प्रतीक माना जाता गया है. यहां  गणेश की उपासना, धन, वैभव और ऐश्वर्य की देवी लक्ष्मी के साथ ही शुभ लाभ, स्वस्तिक और बही-खाते की पूजा की परम्परा है.
  • इसे भारतीय संस्कृति में विशेष स्थान प्राप्त है, इसलिए जातक की कुण्डली बनाते समय या कोई मंगल व शुभ कार्य करते समय सर्वप्रथम स्वस्तिक को ही अंकित किया जाता है.
  • हमारे यहां स्वस्ति वाचन करने की परम्परा है. यह शुभ और शांति के लिए प्रयोग में लाया जाता है. पढ़ते समय कुशा से पानी के छींटे डाले जाते हैं जो वैमनस्य और क्रोध को शांत करने का प्रतीक है.

स्वस्ति मंत्र: स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः स्वस्ति नस्ताक्ष्यों अरिष्टनेमिः स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु।।(ऋग्वेद 1.89.6)

अर्थात: अगणित स्तुतियों के योग्य और सर्वज्ञ पूषा हमारा कल्याण करें. जिनके रथ के पहियों को कोई हानि नहीं पहुंचा सकता है, ऐसे गरुड़ एवं बृहस्पति हमारा कल्याण करें.

कई व्यापारी पूजा करते समय उस पुस्तक पर स्वास्तिक का चिह्न बनते हैं क्योंकि उसे शुभ मानते हैं और इसी करण वे धन कमाने में सबसे आगे रहते हैं. स्वास्तिक बनाते समय स्वस्ति वाचन (ऋग्वेद 1.89.6) अवश्य करें. याद रखिए कोई भी नई वास्तु लेते समय या शुभ कार्य की शुरुआत करते समय स्वस्तिक चिह्न और स्वस्ति वाचन आवश्य करें.

क्या हिटलर भी करता था स्वस्तिक का उपयोग

कई लोग हिटलर की नाजी चिह्न स्वास्तिक से जोड़ते हैं जोकि अर्थहीन है, जिसमें कोई सिर या पैर नहीं हैं. वे दोनों अलग हैं.

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[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]

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