Thursday, December 26, 2024

Rukmini Ashtami 2024 Date Puja Muhurat Significance

Rukmini Ashtami 2024: पंचांग के अनुसार पौष माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रुकमिणी अष्टमी के नाम से जाना जाता है. इस दिन द्वापर युग में श्रीकृष्ण की पत्नी देवी रुक्मिणी का जन्म हुआ था. देवी रुक्मिणी भगवान श्रीकृष्ण की प्रमुख पटरानी थी.

इन्हें देवी लक्ष्मी का अवतार भी माना जाता है. मान्यता है कि इस दिन श्रीकृष्ण और रुकमिणी देवी की पूजा करने से घर में बरकत का वास होता है, लक्ष्मी जी प्रसन्न होती है. जानें रुक्मिणी अष्टमी 2024 की डेट, मुहूर्त और महत्व.

रुक्मिणी अष्टमी 2024 डेट (Rukmini Ashtami 2024 Date)

रुक्मिणी अष्टमी इस साल 4 जनवरी 2024, गुरुवार को मनाई जाएगी. इस दिन साल 2024 की पहली कालाष्टमी भी है. कहते हैं लक्ष्मीस्वरूपा देवी रुक्मिणी की पूजा करने से दांपत्य जीवन खुशहाल रहता है और आर्थिक संकट नहीं गहराता.

रुक्मिणी अष्टमी 2024 मुहूर्त (Rukmini Ashtami 2024 Muhurat)

हिंदू पंचांग के अनुसार पौष माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि 3 जनवरी 2024 को रात 07 बजकर 48 मिनट से शरू होगी और अगले दिन 4 जनवरी 2024 को रात 10 बजकर 04  मिनट पर इसका समापन होगा.

  • सुबह 07.15 – सुबह 08.32

रुक्मिणी अष्टमी पूजा विधि (Rukmini Ashtami Puja Vidhi)

  • इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और शुभ मुहूर्त में पूजा स्थल पर श्रीकृष्ण और माता रुक्मिणी की तस्वीर स्थापित करें.
  • दक्षिणावर्ती शंख से श्रीकृष्ण और रुक्मिणी का अभिषेक करें। इसके लिए केसर मिश्रित दूध का उपयोग करना चाहिए. पंचोपचार विधि से पूजन करें.
  • देवी रुकमिणी को लाल वस्त्र, इत्र, हल्दी, कुमकुम चढ़ाएं.
  • दूध, दही, घी, शहद और मिश्री को एक साथ मिलाकर पंचामृत बनाएं. किसी शुद्ध बर्तन में भरकर देवी-देवता को भोग लगाएं. ध्यान रखें श्रीकृष्ण को तुलसी के बिना भोग नहीं लगाना चाहिए.
  • पूजा करते समय कृं कृष्णाय नम: मंत्र या फिर लक्ष्मी जी के मंत्रों का जाप करते रहें
  • अंत में गाय के घी का दीपक लगाकर, कर्पूर के साथ आरती करें. और फिर ब्राह्मण को भोजन कराएं. मान्यता है इस पूजन विधि से लक्ष्मी जी प्रसन्न होती हैं.
  • इस दिन दान में सुहागिन महिलाओं को सुहाग की सामग्री भेंट करना शुभ होता है. इससे धन-सौभाग्य में वृद्धि का वरदान मिलता है.

रुक्मिणी ने बताया श्रीकृष्ण के लिए प्रेम का महत्व

श्रीमद्भागवत के अनुसार, एक बार भगवान श्रीकृष्ण को तीसरी पत्नी सत्यभामा को यह शंका हुआ कि वे रुक्मिणी को अधिक प्रेम करते हैं. श्रीकृष्ण की प्रिय बनने के लिए सत्यभामा ने एक यज्ञ आयोजित किया. यज्ञ के अंत में नारद जी ने दक्षिणा के रूप में श्रीकृष्ण को ही मांग लिया, तब सत्यभामा ने ऐसा करने से इनकार कर दिया. तब नारदजी ने बोला कि श्रीकृष्ण नहीं दे सकती हैं तो कान्हा के तौल के बराबर सोना दान करें.

सत्यभामा अहंकार में चूर थी, उन्होंने अपना सारा सोना, यहां तक की महल का सारा सोना भी श्रीकृष्ण के बराबर तौल दिया लेकिन कान्हा का पलड़ा भारी रहा. तब सत्यभामा ने रुक्मिणी से मदद मांगी. देवी रुक्मिणी ने प्रेमपूर्वक एक तुलसी का पत्ता तराजू के दूसरी ओर रख दिया और इस तरह तुला दान संपन्न हुआ. देवी रुक्मिणी ने सत्यभामा को समझाया कि प्रेम सच्चे मन से किया जाता है, अभिमानी होकर नहीं.

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