Monday, November 25, 2024

Miraculous Yogi Tailang Swami Jayanti 2024 On 21 January Know Why Called…

Tailang Swami Jayanti 2024: तैलंग स्वामी या त्रेलंग स्वामी की जयंती 21 जनवरी को मनाई जाएगी. ये शिव भक्ति से ओत प्रोत थे. इनके माता-पिता दोनों ही शिवजी के परम भक्त थे. इनके बारे में जो बात सबसे अधिक हैरान करती है, वह यह है कि इनकी उम्र 300 साल थी और 40 साल के बाद उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन एक योगी के रूप में व्यतीत किया.

साल 2024 में 21 जनवरी को तैलंग स्वामी की 417वीं जयंती मनाई जाएगी. हालांकि इनके जन्म की तिथि को लेकर स्पष्ट जानकारी नहीं है. लेकिन कहा जाता है कि, इनका जन्म 15वीं शताब्दी के अंत में हुआ था. जन्मतिथि ज्ञान न होने के कारण इनकी लंबी उम्र को लेकर भी मतभेद है.

तैलंग स्वामी के नाम में ही है ‘शिव’

तैलंग स्वामी के जन्मतिथि को लेकर मतभेद है. इनकी जयंती हर साल पौष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है. कुछ शिष्यों के अनुसार तैलंग स्वामी का जन्म 1529 को हुआ था तो वहीं अन्य जीवनी लेखक के अनुसार इनका 1607 बताया जाता है. कहा जाता है कि तैलंग स्वामी का जन्म आंध्र प्रदेश के विजयनगरम जिसे में कुंभिलपुरम में हुआ था.

इनकी माता विद्यावती देवी और पिता नरसिंह राव भगवान शिव के परम भक्त थे, जिसके कारण तैलंग स्वामी का नाम भी उन्होंने शिवराम रखा था. तैलंग स्वामी के पास दैवीय शक्तियां थीं और अपने जीवन में इन्होंने अंसख्य चमत्कार किए. इन्होंने विवाह नहीं किया. माता के कहने पर ही तैलंग स्वामी ने मां काली की उपासना करती शुरू की और माता के देहांत के बाद श्मशान के पास ही झोपड़ी बनाकर रहने लगे.

चलते फिरते शिव कहलाते थे तैलंग स्वामी

रामकृष्ण परमहंस ने जब तैलंग स्वामी को देखा तो कहा, मैंने देखा कि सार्वभौमिक भगवान स्वयं अपने शरीर को अभिव्यक्ति के लिए एक वाहन के रूप में उपयोग कर रहे हैं, जो ज्ञान की एक विस्तृत स्थिति में थे. उनके शरीर में कोई चेतना नहीं थी. वहां बहुत गर्म रेत थी और सूर्य की गर्मी के कारण जिस रेत पर कोई पांव तक नहीं रख पा रहा था वहां स्वामी गणपति सरस्वती (भागीराथानंद सरस्वती ने तैलंग स्वामी को शिक्षा देते हुए इनका नाम स्वामी गणपति सरस्वती रखा था) आराम से लेटे हुए थे. रामकृष्ण ने तैलंग स्वामी को वास्तविक परमहंस यानी सर्वोच्च हंस कहा. रामकृष्ण परमहंस ने तैलंग स्वामी को ‘सचल विश्वनाथ’ यानी वाराणसी के चलते फिरते शिव के रूप में वर्णित किया था.

तैलंग स्वामी से मिलने आए महान आध्यात्मिक विभूतियां

तैलंग स्वामी सिद्धियों के स्वामी थे. लोकनाथ ब्रह्मचारी, बेनीमाधव ब्रह्मचारी, रामकृष्‍ण परमहंस, विवेकानंद, महेंद्रनाथ गुप्‍त, लाहिड़ी महाशय, स्‍वामी अभेदानंद, प्रेमानंद, भास्‍करानंद, विशुद्धानंद और साधक बापखेपा आदि जैसी महान आध्‍यात्मिक विभूतियां वाराणसी में इनसे मिलने आईं.

सारे तीर्थ हैं शरीर में

तैलंग स्वामी का मानना था कि ईश्वर को तलाशना है तो अपने भीतर तलाश करो. गंगा नासापुटा में, यमुना मुख में, बैकुण्ठ हृदय में, वाराणसी ललाट में और हरिद्वार नाभि में है. जब सारे तीर्थ शरीर में ही हैं तो फिर यहां-वहां क्यों भटका जाए. तैलंग स्वामी मानते थे कि, जिस पुरी में प्रवेश करने में कोई संकोच या कुण्ठा न हो, वही बैकुण्ठ है. 

1733 में तैलंग स्वामी  प्रयाग पहुंचे और उन्होंने भागीरथ आनंद सरस्वती से संन्यास की दीक्षा ली और फिर वाराणसी में बस गए. 1887 में अपनी मृत्यु तक वे वहीं रहे. 26 दिसंबर 1887 को पौष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को इन्होंने नश्वर शरीर का त्याग कर दिया. कहा जाता है कि तैलंग स्वामी 300 वर्ष तक जिए लेकिन कोई भी उनकी सही उम्र नहीं जानता.

तैलंग स्वामी की शिक्षाएं

  • तैलंग स्वामी अपने शिष्यों से कहते थे कि मोह, दुख और बंधन का मुख्य कारण है.
  • जिस क्षण व्यक्ति को संसार और ईश्वर में कोई अंतर नहीं दिखता, उसका जीवन सुखी और आनंदमय हो जाता है.
  • जैसे ही लोग आध्यात्मिक रूप से अधिक सक्रिय होने लगेंगे, उन्हें कष्टों से छुटकारा मिलने लगेगा.
  • जिस व्यक्ति के मन में कोई इच्छा नहीं होती, उसके लिए धरती स्वर्ग बन जाती है.
  • संतुष्ट व्यक्ति सबसे अमीर होता है और लालची व्यक्ति सबसे गरीब.
  • व्यक्ति की शत्रु इंद्रिया ही हैं और नियंत्रित इंद्रिया सच्ची मित्र.
  • गुरु केवल वही हो सकता है जो मोह माया से मुक्त और अहंकार से परे हो.

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