भारतीय हॉकी टीम
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ऐतिहासिक…एशियाई खेलों में पदकों के शतक से पूरे देश का सीना चौड़ा हो गया। जब पदक के साथ राष्ट्रगान की धुन बजती है और तिरंगा ऊपर उठता है…वह सबसे बड़ा लम्हा होता है। हांगझोऊ में भारतीय खिलाड़ियों के अब तक के सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन ने राष्ट्र भावना को चरम पर पहुंचा दिया है। यकीन मानिये, यह खिलाड़ियों के आत्मविश्वास को उस स्तर तक पहुंचा देगा, जहां वे अगले वर्ष पेरिस में होने जा रहे ओलंपिक में देश के लिए अपना सब कुछ झोंक देंगे।
मुझे बाबूजी (मेजर ध्यानचंद) ने एक कहानी बताई थी, जो इस वक्त याद आ रही है। 1936 के बर्लिन ओलंपिक में भारत ने अद्भुत प्रदर्शन करते हुए हॉकी का स्वर्ण जीता था और बाबूजी रो रहे थे। दरअसल, उन्हें इस बात का मलाल था कि उनकी टीम के जीतने पर भी देश का नहीं, बल्कि अंग्रेजों की गुलामी में जकड़े ब्रिटिश इंडिया का झंडा लहराया गया। उम्मीद है कि एशियाड में भारत का प्रदर्शन देश में खेलों की बयार को और आगे बढ़ाएगा।
रुकें नहीं, थमें नहीं…बढ़ते रहें
भारतीय हॉकी टीम को एशियाड का स्वर्ण पदक जीतते देखना सबसे ज्यादा सुकून देने वाला लम्हा रहा। भारतीय हॉकी अब पटरी पर लौट चुकी है। हमें अब रुकना नहीं है। पेरिस ओलंपिक की तैयारियों में जुट जाना है। बस अति आत्मविश्वास से बचना होगा क्योंकि टोक्यो ओलंपिक का पदक जीतने के बाद हम अपेक्षाओं के अनुरूप नहीं खेले। मैं वैसे भी भारतीय टीम को एशिया के स्तर से काफी ऊपर मानता हूं, लेकिन इन खेलों का दबाव बड़ी चीज होती है। हम पांच साल पहले जकार्ता में इसी दबाव में मलयेशिया के आगे बिखर गए थे और फाइनल में भी नहीं पहुंच पाए थे। मेरे शिष्य विवेक सागर ने हांगझोऊ जाने से पहले आशीर्वाद लिया था। मैंने उनसे कहा कि स्वर्ण लेकर ही आना। विवेक ने जीतते ही फोन कर बताया, मैंने वादा पूरा कर दिया।