Doctor
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Female Doctor Of India: पुराने दौर में दाई और वैद्य हुआ करते थे, लेकिन जब चिकित्सा पद्धति में बढ़ावा हुआ तो डॉक्टर आए। अधिकतर पुरुष डॉक्टरों की भीड़ में महिलाओं ने अपना स्थान बनाया। उच्च पढ़ाई और मेहनत के बल पर चिकित्सा क्षेत्र में महिलाओं की सहभागिता बढ़ गई। आज चिकित्सा के क्षेत्र में कई दमदार महिला डॉक्टर अपने नाम का परचम लहरा रही हैं। अपने-अपने क्षेत्र में बेहतर काम कर रही हैं। इन महिला डॉक्टरों का नाम विदेशों तक मशहूर है। हालांकि महिलाओं को चिकित्सा के क्षेत्र में प्रोत्साहित करने का श्रेय भी कुछ महिलाओं को जाता है। यहां कुछ महिला डॉक्टरों की कहानी बताई जा रही है, जिन्होंने चिकित्सा के क्षेत्र में अपना अहम योगदान दिया और एक नई मिसाल कायम की।
डॉ. भक्ति यादव
उज्जैन के पास महिदपुर में 3 अप्रैल 1926 को भक्ति यादव का जन्म हुआ। जब लड़कियों को शिक्षा के लिए संघर्ष करना पड़ता था, उस दौर में भक्ति जिद करके स्कूल गईं। एमजीएम मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस कोर्स के अपने बैच की वह पहली महिला छात्रा थीं।
1952 में एमबीबीएस की डिग्री हासिल करके उन्होंने कई जगहों पर नौकरी की और बाद में वात्सल्य नर्सिंग होम की शुरुआत की। डॉक्टर भक्ति यादव मरीजों का मुफ्त में इलाज करती थीं। काफी उम्र होने तक वह मरीजों का इलाज करती रहीं, लाखों महिलाओं का सफल प्रसव कराया। इस कारण उन्हें डॉक्टर दादी भी कहा जाता था। 2011 में उन्हें निःशुल्क चिकित्सा सेवा के लिए पद्मश्री से सम्मानित किया गया।
डॉ. आनंदीबाई जोशी
आनंदीबाई जोशी भारत की पहली महिला डॉक्टर थीं। पुणे में 31 मार्च 1865 को जन्मी आनंदीबाई की शादी 9 साल की उम्र में अपने से 20 साल बड़े युवक से हुई। 14 वर्ष की आयु में उनकी पहली संतान का जन्म हुआ। हालांकि 10 दिन बार उनके बच्चे की मृत्यु हो गई। इस घटना के बाद आनंदीबाई ने डॉक्टर बनने की ठानी। इस घटना से उन्हें गहरा सदमा पहुंचा और आनंदीबाई ने डॉक्टर बनने की ठानी। पति ने उन्हें मेडिकल की पढ़ाई कराई। 1886 में 19 साल की उम्र में एमडी की डिग्री पाने वाली वह पहली भारतीय महिला डॉक्टर बनीं।
डॉ. इंदिरा हिंदुजा
पाकिस्तान के शिकारपुर में जन्मी इंदिरा हिंदुजा देश के विभाजन के बाद भारत में आ गईं। मुंबई में कुछ समय रहने के बाद वह अपने परिवार के साथ बेलगाम चली गईं। इंदिरा ने महिला विद्यालय से पढ़ाई की और आगे मेडिकल की तैयारी की। बॉम्बे यूनिवर्सिटी से स्त्री रोग विज्ञान में एमडी की डिग्री हासिल करने के बाद अपना पूरा जीवन लोगों की सेवा में लगा दिया। 6 अगस्त 1986 में उन्होंने केईएम हॉस्पिटल में देश को पहली टेस्ट ट्यूब बेबी की सौगात देकर इतिहास रचा। चिकित्सा के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए इंदिरा हिंदुजा को 2011 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया।
डॉ. एमवी पद्मा श्रीवास्तव
ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस (एम्स) के तंत्रिका विज्ञान विभाग में प्रोफेसर रहीं डॉ एमवी पद्मा श्रीवास्तव का जन्म 1965 में हुआ था। उन्होंने 1990 में एम्स में न्यूरोलॉजी में मास्टर डिग्री हासिल की। चिकित्सा विज्ञान में ‘एम्स में कोड-रेड नामक कार्यक्रम’ की शुरुआत करते हुए उन्होंने अपना अहम योगदान दिया। एमवी पद्मा एक न्यूरोलॉजिस्ट के साथ-साथ एक लेखिका भी हैं।